इरादा

जब इस काया के कण- कण का,
मिट्टी में रज-रज होना है,
जो मिला अमूल्य उपहार तुम्हें,
पल - पल में उसको खोना हैं,
जब कर्म ही हो एक विकल्प,
किस्मत का क्या रोना है?
स्मरण रहें पथिक सदा,
कलियों के चंचल यौवन पर,
विस्मित न तुमको होना है।
धैर्य धरो, संधान करो,
निज आलस्य सिन्धु को दान करो,
पुरखो व संस्कृति का ध्यान धरो,
इनमें भी नवरंग भरो।
पथ की अपनी मर्यादा हैं,
निष्कंटक कम, कंटक ज्यादा हैं,
तारण अडिग इरादा हैं।