ऋतु बीत चुकी हैं बहारों की,
श्रमजल ही श्रृंगार बना,
जीवन के रंगमंच पर,
फिर से नव किरदार गढ़ा,
अंतर्मन के तम में एक,
सूर्यांश प्रज्ज्वलित हुआ,
घटाटोप अंधियारे में भी,
ध्येय पथ हैं चमक उठा,
युवा मन फिर उमंग भर,
संयम की उंँगली पकड़,
निज अनुभव कोष से,
एक नयी कहानी गढ़ने,
धन्य जवानी करने,
पथ पर आगे ,
बढ़ चला है
बढ़ चला है...
📷 निखिल यादव