अपने गाँव के खंडहरों में,
बचपन की गलियों में,
तालाबों के पानी में,
नहरों के किनारे पर,
आम के बागीचों में,
खेत-खलिहानों में,
लहलहाती फसलों के बीच,
गोधुली बेला में,
भोर की आशा में,
हम खुद को छोड़ आये हैं,
सुनहरे भविष्य की चाह में,
बस परछाईं यहाँ लायें हैं,
और यहाँ अजब सा नजारा हैं,
भागते हुए लोग हैं,
हाँफते हुयी जिंदगी हैं,
शोर-शराबे हैं,
धुएँ के गुबार हैं,
सबकुछ यहाँ करोबार हैं,
नकली हँसी हैं,
रोती हुई मुस्कान हैं।
बचपन की गलियों में,
तालाबों के पानी में,
नहरों के किनारे पर,
आम के बागीचों में,
खेत-खलिहानों में,
लहलहाती फसलों के बीच,
गोधुली बेला में,
भोर की आशा में,
हम खुद को छोड़ आये हैं,
सुनहरे भविष्य की चाह में,
बस परछाईं यहाँ लायें हैं,
और यहाँ अजब सा नजारा हैं,
भागते हुए लोग हैं,
हाँफते हुयी जिंदगी हैं,
शोर-शराबे हैं,
धुएँ के गुबार हैं,
सबकुछ यहाँ करोबार हैं,
नकली हँसी हैं,
रोती हुई मुस्कान हैं।