बस परछाईं यहाँ लायें हैं...


अपने गाँव के खंडहरों में,
बचपन की गलियों में,
तालाबों  के पानी में,
नहरों के किनारे पर,
आम के बागीचों में,
खेत-खलिहानों में,
लहलहाती फसलों के बीच,
गोधुली बेला में,
भोर की आशा में,
हम खुद को छोड़ आये हैं,
सुनहरे भविष्य की चाह में,
बस परछाईं यहाँ लायें हैं,
और यहाँ अजब सा नजारा हैं,
भागते हुए लोग हैं,
हाँफते हुयी जिंदगी हैं,
शोर-शराबे हैं,
धुएँ के गुबार हैं,
सबकुछ यहाँ करोबार हैं,
नकली हँसी हैं,
रोती हुई मुस्कान हैं।

याद आते हैं...

घनी अँधेरी रातों में,
धीरे-धीरे चाँद सा आना,
कड़कती धूप में ,
छाँव सा बन जाना,
 घटाटोप बरसात में,
साया सा हो जाना,
उम्मीदें बिखर जायें,
या हम सिहर जायें,
तुम्हारा आना,
और इन्हें,
फिर से सजाना,
मुझे बहुत,
याद आते हैं।
कभी- कभी हम भी,
सोचते हैं कि,
अब बड़े हो गयें हैं,
लेकिन आज भी अपने,
उस छोटे से आशियें में,
खुद को मासूम सा पाना,
उन गलियों में फिर से,
बच्चा हो जाना,
मुझे बहुत,
याद आते हैं। 

संकल्प

एक संकल्प लियें चलता हूँ, 
एक स्वप्न सजाये फिरता हूँ, 
छोटी सी बगिया हो अपनी, 
बन जाऊँ मैं माली उसका, 
बगिया की नन्ही कलियों में, 
और वहाँ की गलियों में, 
'सुगंध' प्रभु ऐसा भर दे, 
कि महक उठे जग सारा। 
वसुधा, अम्बर, और प्रकृति का, 
हम पर है उपकार अनेक,
कल-कल बहती नदियाँ भी, 
देती हमको यहीं संदेश, 
बड़े भाग्य से हमनें, 
यह मानव तन पाया हैं, 
बस यही कामना है मेरी, 
जल बन जायें यह जीवन मेरा 
अर्पण बगिया में कर दें। 

फिर मैं सो जाता हूँ...

इतना सा उपकार कर दो ,
हमारी हृदय -व्यथा को ,
कविता का नाम न दो ,
कुछ टूटे सितारे पड़े है ,
उन्ही से ये आकाश सजाता हूँ ,
कुछ पुराने गीत है ,
उन्हें गुनगुनाता हूँ ,
घनी काली रातों  में ,
भर नयन सपने बसाता हूँ ,
और फिर भोर में सब बिखरा पाता हूँ ,
हिय में कुछ चिंगारी है,
दिनभर उन्हें धधकाता हूँ ,
सारे बिखरे सपने समेटकर ,
रात को फिर सो जाता हूँ। 
हर दिन जड़वत ,
यही क़िस्सा दोहराता हूँ ,
रात की ओट में ही,
उषा का सन्देश पाता हूँ ,
समय से आगे जाता हूँ ,
प्यास पाता  हूँ ,
पीछे रहता हूँ ,
प्यासा ही रह जाता हूँ ,
और फिर मैं सो जाता हूँ।

बस गुजरता हैं...

हम वंशी बजाते हैं ,
बहरों के शहर में ,
गुमनाम सी जिंदगी हैं ,
इस अंजान नगर में ,
हम यूँ आये हैं ,
किस्मत की ऊँगली थामकर ,
फिर न जाने कौन से शहर भेंजेगा ,
ये मेरे किस्मत का सफर,
कुछ यार कुछ दोस्त,
ये दोस्ती बस चाय तक ,
हेलो और हाय तक ,
कुछ कहा नहीं जाता,
कुछ सुना नहीं जाता,
बस दिन बीत जाता है,
वक़्त की रेत को फिसलते देखकर , 
कुछ सपने ,कुछ हकीकत 
साथ लाये हैं ,
अपने घर-परिवार का ,
विश्वास लाये है ,
सुबह से शाम ,
फिर शाम से सुबह ,
यूँ ही वक़्त गुजरता हैं , 
बस गुजरता हैं।