बस गुजरता हैं...

हम वंशी बजाते हैं ,
बहरों के शहर में ,
गुमनाम सी जिंदगी हैं ,
इस अंजान नगर में ,
हम यूँ आये हैं ,
किस्मत की ऊँगली थामकर ,
फिर न जाने कौन से शहर भेंजेगा ,
ये मेरे किस्मत का सफर,
कुछ यार कुछ दोस्त,
ये दोस्ती बस चाय तक ,
हेलो और हाय तक ,
कुछ कहा नहीं जाता,
कुछ सुना नहीं जाता,
बस दिन बीत जाता है,
वक़्त की रेत को फिसलते देखकर , 
कुछ सपने ,कुछ हकीकत 
साथ लाये हैं ,
अपने घर-परिवार का ,
विश्वास लाये है ,
सुबह से शाम ,
फिर शाम से सुबह ,
यूँ ही वक़्त गुजरता हैं , 
बस गुजरता हैं।

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