बस तुम थी ...



तुम आयें थे मेरी देहरी पर अतिथि बनकर,
व्यपारी तन-मन को प्रेम वसन से ढ़ककर,
समीर चहक गया तुम्हारी सुगंध में घुलकर,
हम भी बहक गये जब देखा तुमनें हँसकर।
स्वागत में  सदन के द्वार खोल दिये,
मुठ्ठी भर के हृदय में तुमको ठौर दिये,
अवसर अनुकूल जानकर तुमने प्रिये,
सम्मोहन बाण इस ओर छोड़ दिये।
ये सब तो बस एहसासों की कहानी हैं,
कोरे सपनों सा, जज्बातों की जुबानी हैं,
तुम्हें फुर्सत कहाँ थी, अपनी किताबों से,
जो देखती कि इनसे पार भी जिंदगानी हैं।
खैर तुम्हारा फैसला एकदम खरा निकला,
तुम्हारी सफलता का झण्डा हरा निकला,
मिल गया तुम्हें एक नयी दुनिया नये लोग,
तो मेरी अनकही चाहत का कद बौना निकला।
चाहत अनकही थी मगर जिंदगी की अंग थी,
लाल, गुलाबी, नारंगी रंगों में एक रंग सी थी,
अब कोई भी इस जिंदगी में संग हो या न हों,
पहली और आखिरी चाहत  बस तुम थी,
बस तुम थी। 

"गुलदस्तें"



एक दिन के जीवन से भी साँसे छीनते हैं,
हम गुलदस्तें देने की रवायत बदलते हैं,
अगली बार जब तुम आओ मुझसे मिलने, 
इन फूलों को गमलों के साथ ले आना। 
मैं गमलों को अपनी बालकनी में सजा दूँगी, 
और तुम्हें याद करके इन्हें हर दिन सिचूंँगी , 
इन नन्हें पौधों की आरर टहनियों पर, 
जब रंग-बिरंगे फूल खिलने लगेंगे तब, 
संतोष होगा हमें 'प्रेम' को खिलता देख के, 
हवाओं के संग-संग झूमता हुआ देख के। 


नींद


नींद कितनी खूबसूरत होती है ना? जब दिनभर की भागदौड़ के बाद थककर चूर हो जाते हैं ,तब नींद हमें सुकून ,नई ऊर्जा व फिर से जिंदगी के सफर में आगे बढ़ने का उत्साह देती हैं।कभी-कभी तो नींद में ही जीवन के सपने मिल जाते हैं और इन सपनों को पूरा करने के लिए जागना पड़ता है ,मेहनत करनी पड़ती है। लेकिन यही नींद अगर ऐसे समय पर आयें जब आप का समय पहले से ही किसी आवश्यक कार्य के लिए सुनिश्चित किया गया हो।
अब आज का ही वाकया ले लीजिए। आज हमारे द्वितीय आंतरिक मूल्यांकन 2019-20 का आखिरी दिन था, पहली परीक्षा 11:30 - 12:30 बजे तक थी।प्रतिदिन की तरह सुबह समय से उठे,प्रातः भ्रमण पर गए, दैनिक क्रिया से निवृत्त हुए, प्रणायाम किए और कुछ देर पढ़ाई भी की। अभी परीक्षा शुरू होने में डेढ़ घंटे का वक्त था, हम कुर्सी पर बैठकर अपने नोट्स देख रहे थे। हमको झपकी आने लगी,हमने सोचा अभी वक्त है,कुछ देर आराम कर लेते हैं और हम सो गए। हम ऐसे सोए कि हमें याद  ही नहीं रहा परीक्षा देने जाना है,हमारी नींद खुलती है 12:00 बजे। परीक्षा का आधा घंटे का समय निकल चुका होता है ,हम  छात्रावास से भागते- भागते  5 मिनट में परीक्षा कक्ष में पहुंँचते हैं। वैसे तो अभी आधे घंटे ही बीते थे लेकिन लगभग आधे लोग परीक्षा देकर जा चुके थे हमने भी जल्दी-जल्दी परीक्षा लिखी, 25 मिनट का वक्त लगा। फिर कापी जमा करते समय मैम ने पूछा कि लेट क्यों हो गये? हमने कहा कि मैम सो गए थे ,यही कहकर बाहर चले आये। अब आप सोचिए जरा अगर हम आधे घंटे और देर से उठते तो परीक्षा समाप्त हो चुकी होती है और हम अनुपस्थित दर्ज कर दिए जातें।

ऋतुराज की सिसकी

  

इस बार ऋतुराज वसंत ने ये खेल खेला हैं,
मेरे गुलशन को छोड़कर हर ओर इनका मेला हैं,
ऋतुराज वसंत ! बतलाओ  मैंने क्या खता की,
कि तुमने मेरे गुलशन में अबतक दस्तक न दी।
शिकायत सुनकर मेरी , वसंत सिसकनें लगा ,
चक्षुओं से उसकी अब मोती भी झरने लगा।

रुँधे गले से अपनी हृदय-व्यथा कहने लगा,
इन कंक्रीटों के शहर में भला मैं कैसें आता,
इन धुंँओं के गुबार में तड़प कर मर जाता,
तुम इस बार अपने गाँव क्यों नहीं चलते?
गाँव के घट-घट में  मेरी वसंती बहार हैं,
सरसों के पीले फूलों को तुम्हारा इंतजार हैं।

अम्मा-बाबूजी की बूढ़ी आँखें आस लगाए हैं,
ये मोहन दो वर्ष से गाँव ही नहीं आयें हैं,
पेट की आग, घर की जरूरतें और कुछ सपने,
मोहन को शहर की ओर खींच लायें हैं,
इस शहर में हर दिन एक नयी जंग हैं,
जिंदगी की कीमत पर सपनों के रंग हैं।

बुनियादें गुमनाम रह जाती हैं, अक्सर जमाने में,
लोग इन पर खड़े महलों से ही 'इश्क' करते हैं,
शहर में बड़ी चर्चा है इन महलों की खूबसूरती का, 
जो किसी बोझ सी हैं बुनियादों की जिन्दगी में। 
महल खूबसूरत है इसमें कोई शक नहीं , 
इनकी तारीफों में क्या बुनियादों को हक नहीं ? 
  

Socio-Economic Survey Of Kanas Village, Ajmer

       Socio-Economic Survey of Kanas Village, Ajmer
 B.A B.Ed. Second Year 
Geography Section
DESSH
Regional Institute of Education, Ajmer

28/01/20

B. A B. Ed. Second Year में कुल 43 छात्र-छात्रायें हैं, इनमें 13 छात्र व 30 छात्रायें हैं। हमारा कानस  गाँव  के सर्वे का कार्यक्रम 28 जनवरी से 31 जनवरी तक डॉ० अल्बर्ट होरो, डॉ० दुर्गा कड़ेल, श्री ओमप्रकाश, और निर्मल तंवर के मार्गदर्शन में होना पूर्व निर्धारित था। 
28 जनवरी को तय समय से बस से हम सब कानस गाँव के लिए प्रस्थान किये, पुष्कर मार्ग से होतें हुए अरावली की सुरम्य पहाड़ियों के बीच से हम बूढ़ा पुष्कर रोड़ पर आये जो आगे जाकर पुष्कर बाईपास में मिलता है, पुष्कर बाईपास के किनारे  कानस गाँव का पंचायत भवन था। 
हम सब यही पर एकत्र हुए, हमें सात समूहों में अल्बर्ट होरो सर ने विभक्त किया और प्रत्येक समूह का लीडर चुना गया।  कुल 07 समूह बनें ,हमारा समूह "ग्रुप -04" था,  "ग्रुप-07" में 07 सदस्य तथा अन्य सभी समूहों में  06 सदस्य थे। हमें "ग्रुप-04" का लीडर चुना गया। 

इसके बाद हम गाँव की ओर गये । प्रत्येक समूह का क्षेत्र निर्धारित किया गया और उस क्षेत्र का नजरी नक्शा तैयार करने को कहा गया। हम अपने निर्धारित क्षेत्र में घूमें और एक  खाका तैयार किये। हम सब करीब एक बजे 'श्री राम घाट'पर एकत्रित हुए, यही पर लंच का इंतजाम था। अल्बर्ट होरो सर को प्रत्येक समूह ने अपना नक्शा दिखाया व अपने अनुभव साझा कियें, फिर हम सब ने लंच किया। लंच के बाद ढा़ई बजे हम पुनः गाँव में गये, निर्देशानुसार नक्शे में सुधार किये और सवा चार बजे ं हम घाट पर वापस आये, चाय - नाश्ता किये और बस से साढ़े पाँच बजे तक संस्थान में वापस आ गए। नक्शे को अंतिम रूप देकर, अल्बर्ट होरो सर को दिखाया और आवश्यक निर्देश लेकर छात्रावास वापस आ गयें। इस प्रकार हमारा प्रथम दिवस पूर्ण हुआ। 


29/01/20

दूसरे दिन फिर हम सभी तय समय पर उपस्थित हुए और बस से कानस गाँव के लिए प्रस्थान किये। आज हम माकड़वाली रोड़ से पुष्कर बाईपास होतें हुए 'बूढ़ा पुष्कर मंदिर' के 'श्रीराम घाट' पर एकत्र हुए। आज हमें तीन घर का सर्वे करना था। हम अपने - अपने समूहों में गाँव में अपने निर्धारित क्षेत्र में गये। सर्वे के मुख्य बिन्दु निम्नलिखित थे-
1.Background Information
2.Agriculture And Land Use
3.Education 
4.Status Of Women
5.Health And Nutrition
6.Quality Of Health Care        
7.Pattern Of Household Expenditure
प्रथम घर का अनुभव काफी अच्छा रहा, उन्होंने हमारे सारे सवालो का स्पष्ट रुप से जवाब दिया। हमनें शेड्यूल को ठीक प्रकार से भरा और हम दूसरे घर की ओर चले।  दूसरे घर में महिलायें ही थी, उनसे हमनें सवाल पूछें इन्होंने भी स्पष्ट जवाब दिया। हमारे क्षेत्र में कुल 19 घर थे, परन्तु हमें 10 घर का ही सर्वे करना था। 
हमारा क्षेत्र मुस्लिम बाहुल्य क्षेत्र था। सड़कें कच्ची थी,जो बनी भी थी वो लगभग टूट चुकी थी। जल-निकासी व कचरा का कोई समुचित प्रबंध नहीं था। 
अभी लंच में समय था तो हम पास की चाय की दुकान पर बैठे, चाय पियें, फिर डेरे की ओर लंच के लिए गए। 

हमारा आज एक सर्वे बचा था, उसे पूरा करने के लिए लंच के बाद फिर हम गाँव में गयें। एक घर में हम सब गयें, उन्हें अपने व सर्वे के बारे में बताया। वे सब  CAA-NRC को लेकर भ्रमित थे, और जानकारी देने से इंकार कर रहे थे, हम सब ने मिलकर उन्हें समझाया कि हमारा CAA-NRC से कुछ लेना देना नहीं है, ये एक शैक्षणिक सर्वे है। इसके बाद हमने उनसे जानकारी ली, शेड्यूल भरा और चलते बने। हमने अपने ग्रुप की सुरक्षा को ध्यान में रखकर CAA-NRC को समझाने की जहमत नहीं उठाया, इतना जरूर कहा कि NRC अभी लागू नहीं हुआ है व CAA से भारतीयों को नहीं डरना चाहिए। 
हमारे पास अभी समय था सो हम रेत के टीले पर गये, खूब धमा-चौकडी़ कियें, फोटो खींचें, सेल्फी लिये, वास्तव में बहुत आनंद आया। 

अब घड़ी इशारा कर रही थी कि अब हमें चलना चाहिए, हम सब अपने डे़रे  के ओर चले। घाट पर करीब सवा चार बजे सब एकत्र हुए, नाश्ता किये,बस में बैठकर संस्थान के लिए प्रस्थान किये। 


साढ़े पाँच बजे संस्थान पहुँचे और अपने - अपने छात्रावास के तरफ चल दिये। इस प्रकार हमारा दूसरा दिन बीता। 

                                         30/01/20
आज कानस गाँव के सर्वे का तीसरा दिन था। हम सब निर्धारित समय से कानस गाँव के लिए प्रस्थान किये। आज फिर हम पुष्कर मार्ग से , अरावली की पहाड़ियों के घुमावदार रास्ते से बूढ़ा पुष्कर रोड़ होतें हुए पुष्कर बाईपास के किनारे पंचायत भवन पहुँचे। हमें आज चार घर का सर्वे करने को कहा गया। अब गाँव वाले भी परिचित हो गये थे और हमें कोई विशेष परेशानी नहीं हुई, इस प्रकार हमने ं आज पांँच घरों का सर्वे पूरा किया।
दो घरों का सर्वे पूरा कर जब हम अपने समूह के साथ आगे बड़े ही थे कि एक ताई जी ने हमें बुलाया, हम उनके घर गए और सर्वे के बारे में बताया, लेकिन उन्होंने हमें सरकारी कर्मचारी समझ शिकायतों की झड़ी लगा दी। उन्होंने पानी की समस्या खासा जोर देकर बताया, कहा कि इस मोहल्लें में पानी का पुख्ता प्रबंध नहीं है, उन्हें टैंकर से पानी मँगवाना पड़ता है, जिसे वे पक्की टंकी में रखकर प्रयोग में लाते हैं। बड़ी मुश्किल से उन्होंने हमारे सवालों के जवाब दिये। सरकारों के निकम्मेपन का इससे जीवंत उदाहरण क्या हो सकता है कि आम जनता तक मूलभूत आवश्कता पानी का समुचित प्रबंध नहीं पहुँच सका। 
हम सब बहुत खुश थे आज हमने लक्ष्य से एक अधिक घर सर्वे किया था। फिर हम सब चाय की दुकान पर बैठे, पाँचों शेड्यूल जाँचे,  सुधार कियें। तबतक चाय तैयार हो चुकी थी , चाय पियें। घड़ी लंच के समय का संकेत दे रही थी सो हम सब घाट की ओर चल दिए। 
लंच के बाद फिर हम वापस गाँव की ओर चले, चूँकि आज का लक्ष्य पूरा हो चुका था, सो हमें केवल घूमना था। हमारे ग्रुप के दो सदस्य हमारे साथ नहीं थे, इनके जगह दूसरे ग्रुप के दो सदस्य आ गए थे, ये बात मैम को पता चल गयी। हम लोग एक पहाड़ी पर चढ़ रहे थे कि फोन आया ग्रुप 04 को वापस बुलाया गया है, हम सब लोग मैम के पास पहुँचे, चूँकि हम लीडर थे हम से ही पूंँछा गया कि दो सदस्य कहाँ है आप के ग्रुप के? 
अब हम क्या जवाब देते? एक सदस्य मैम के साथ ही थी, दूसरे सदस्य को फोन करके वापस बुलाया गया, जो ग्रुप 07 के सदस्यों के साथ थी। मैम ने सजा के तौर पर एक और घर का सर्वे करके लाने को कहा। जो सदस्य ग्रुप 07 के साथ गयी थी उन्हें आने में देरी हो रहीं थी सो मैम ने हम सातों को सर्वे के लिए भेज दिया (पांँच सदस्य हमारे ग्रुप के  दो सदस्य अन्य ग्रुप के) । हम सब चाय की दुकान पर गयें और उसी का सर्वे किया। ये लोग कच्चा घर बना कर परिवार सहित रहते थें और चाय की दुकान भी चलाते थें। इनकी दुकान पुष्कर बाईपास के किनारे थी, और यह हमारे क्षेत्र में आता था। हमारे क्षेत्र का एकमात्र हिन्दू परिवार था यह। 
अब समय हो चुका था ,चार बजने वाले थे, हम वापस घाट की ओर चल दिए। रास्ते में ही ग्रुप 07 के साथ गयी सदस्य मिल गई और हम सब एक साथ हो गयें। 
घाट पर पहुँच कर हमने आखिरी घर का सर्वे निर्मल मैम को दिखायें, फिर सबने चाय - नाश्ता किया और बस से उसी रास्ते से वापस आ गए जिस रास्ते से सुबह आये थे। 
संस्थान में होरो सर ने हम सबसे हमारे अनुभव पूँछे, ग्रुप 02, ग्रुप 05 व ग्रुप 07 की प्रशंसा किये। 
होरो सर, निर्मल मैम व दुर्गा मैम ने ग्रुप लीडरों के साथ मीटिंग की। होरो सर ने सभी ग्रुप के शेड्यूल जाँचे, आवश्यक निर्देश दिए। साथ ही साथ ग्रुप लीडरों को उनके दायित्व का भी बोध कराया। इस प्रकार हमारा तीसरे दिन का सर्वे समाप्त हुआ। 

                                       31/01/20
आज कानस गाँव के सर्वे का आखिरी दिन था। हम निर्धारित समय से बस से माकड़वाली रोड़ से होतें हुए पुष्कर बाईपास पर निकले ं। पुष्कर बाईपास के किनारे "बादर माता के मंदिर" में दर्शन किये। 

दर्शन करने के पश्चात हम आगे बढ़े, हमारे ग्रुप 04 का सर्वे क्षेत्र पुष्कर बाईपास के किनारे ही था सो हम पंचायत भवन न जाकर रास्ते में ही उतर लिए। हमारे ग्रुप का एक ही घर का सर्वे शेष था। हम सब एक घर में गयें, मगर उन्होंने कुछ भी बताने से साफ इंकार कर दिया, हम उन्हें समझाना चाहें लेकिन वो घर के अंदर चली गयी, हमें एक ही घर का सर्वे करना था, हम दूसरे घर चले गये। इस परिवार के लोग NRC को लेकर भयभीत थे, हमने उन्हें विस्तार से समझाया तब उन्होंने ने हमारे सवालों के जवाब दिये। 
फिर हम पास के ही एक चबूतरे पर बैठकर सारे शेड्यूल जाँचे और जहाँ जरूरत थी सुधार किया, इस प्रकार हमारे सर्वे का कार्य पूर्ण हुआ। 

अभी हमारे पास डेढ़ घंटे का समय था सो हम पुष्कर बाईपास के दूसरे छोर की ओर स्थित रेलवे ट्रैक देखने के लिए चल दिए। रास्ते में हमें पवन मिल गये जो कक्षा 07 के छात्र हैं ,उन्होंने हमें खेतों के बीच से रेलवे ट्रैक तक जाने में मदद की। 

यहाँ के लोग अपने परिश्रम व तकनीक के प्रयोग से विपरीत परिस्थितियों में भी इस मरूभूमि से सोना उगलवा रहे हैं। जिनके पास खेती है वो धनिया, पुदीना, गाजर, मूली, प्याज , लहसुन, गन्ना, गेंदा, गुलाब और अन्य फूलों की खेती करते हैं। जिनके पास जमीन नहीं है वो मजदूरी करते हैं या सब्जियों की दुकान लगाते हैं। हमें जो क्षेत्र सर्वे के लिए दिया गया था उनमें किसी के पास खेत नहीं थें। 

गाँव के कुछ दृश्य-

फूल की खेती-

गेहूँ की फसल की सिचाई पम्प से-

 गेहूँ की फसल की सिचाई छिड़काव विधि से-



रेलवे ट्रैक-


आज ग्रुप 04 और ग्रुप 07 को सबको लंच करवाने की जिम्मेदारी दी गई। हम पहले आ गये सो हमनें सबको लंच करवाया-

ग्रुप 07 ने लंच करने के बाद सारा सामान समेटा। आज लंच के बाद सब अपने  हिसाब से ग्रुप बनाकर गाँव में घुमने निकले। हमारा ग्रुप आठ लोगों  का था हम सब पास की पहाड़ी पर गयें, घूमे-फिरे और सवा चार बजे घाट पर लौट आयें। यहाँ चाय-नाश्ता करके हम वापस अपने  संस्थान में आ गए। आज संस्थान में  Teaching Learning Material Exhibition ,3rd Year  के छात्र-छत्राओं द्वारा लगाया गया था, इसका हम सब ने अवलोकन किया। इस प्रकार हमारा चतुर्थ दिन का सर्वे समाप्त हुआ। 

सर्वे के दौरान की कुछ झलकियाँ-








हमें अपने ग्रुप को नेतृत्व करना का अवसर मिला, इसके लिए मैं ग्रुप 04 के सभी सदस्यों का आभारी हूँ, आप सबके सहयोग व विश्वास के लिए हृदय से बहुत-बहुत धन्यवाद।