जमाना डूब के सुनता है किस्सा किसी के टूट जाने की,
हमारे पतझड़ से तुम्हारे आँगन में फिर आई ऋतु बहार की,
देखो न कितना छोटा कद है तुम्हारी इन नादान खुशियों का,
हमें लहजा याद है अबतक तुम्हारी चहकती मुस्कुराहटों का,
तुम्हारे धवल श्रम जल से भीगे उन्मुक्त स्वर्णिम ललाट का,
मैं हृदय से चाहता हूँ कि तुम मेरे किस्से में किरदार बन जाओं,
हर बंदिशे , हर डर को यूँ ही भूल तुम मेरी हमराह बन जाओं,
अपने इंकार से मेरे खातिर एकबार फिर से 'इंकार' कर जाओं।
बहुत सुंदर प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंमेरे ब्लॉग पर आपका स्वागत है।
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आपका हृदय से आभार 😇🙏
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