उम्मीद की क्षितिज पर...



दुनिया, जहाँ अगला पल
हमारे हिस्से में हो न हो 
हम नहीं जानते फिर भी
उम्मीद की क्षितिज पर
स्वप्न की घटायें
सजाते जा रहें हैं|
हँसते - रोते
रुठते - मनाते
जिन्दगी के मुक्तक 
गाते जा रहे हैं|
आकांक्षा की फेहरिस्त
बहुत लंबी हो चली है
'जरुरत' के मोती को
पौरुष के धागे से
अहिस्ता-अहिस्ता
पिरोये जा रहे हैं|



अक्षर



हर अक्षर
कुछ कहता है, 
जीवन पथ पर, 
आदि काल से, 
मानव नित, 
डग भरता है, 
कुछ खट्टे, 
कुछ मीठे, 
अनुभव लेकर, 
आगे ही आगे, 
बढ़ता है, 
हर अक्षर 
कुछ कहता है, 
कुछ भावों के, 
हिस्से रहता है, 
वैसे तो अक्षर, 
भावों को ही, 
धरती के, 
घट-घट में, 
नूतन स्वरूप धर, 
नव झंकार से, 
झंकरित करता है, 
हर अक्षर
कुछ कहता है...