वसंत




मन पुलकित हैं आज प्रकृति का,
वेला वसंत की द्वारें आयी हैं, 
सरसों के पीलें फूलों की चदरिया,
देखों न चहुँओर खेतों में बिछाई हैं।

बगीचों में  देखो आम के पेड़ों पर, 
बौरों ने भी अब ली अंगड़ाई हैं, 
जहाँ तक हमारी नजर जा रहीं हैं, 
मादकता यौवन की  हर ओर छाईं हैं। 

प्रेम का सलीका कोई वसंत से सीखें, 
श्रृंगार में ही स्वागत , श्रृंगार में ही विदाई हैं,
पार्वती ने वसंत में ही शंंभू संग ब्याह रचाई हैं,                     
वसंती आँचल में ही होली की फुहार समायी हैं। 

बचपन, जवानी, बुढ़ापा सब पर एकसार होकर, 
हृदय के सुरों से 'राग बसंत' की धुन बजाई हैं, 
अपना भी मिलन हो जायें इस धरा पर अब, 
तभी ऋतु वसंत ने वसुधा पर महफिल सजाई हैं। 


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