याद आते हैं...

घनी अँधेरी रातों में,
धीरे-धीरे चाँद सा आना,
कड़कती धूप में ,
छाँव सा बन जाना,
 घटाटोप बरसात में,
साया सा हो जाना,
उम्मीदें बिखर जायें,
या हम सिहर जायें,
तुम्हारा आना,
और इन्हें,
फिर से सजाना,
मुझे बहुत,
याद आते हैं।
कभी- कभी हम भी,
सोचते हैं कि,
अब बड़े हो गयें हैं,
लेकिन आज भी अपने,
उस छोटे से आशियें में,
खुद को मासूम सा पाना,
उन गलियों में फिर से,
बच्चा हो जाना,
मुझे बहुत,
याद आते हैं। 

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