एक संकल्प लियें चलता हूँ,
एक स्वप्न सजाये फिरता हूँ,
छोटी सी बगिया हो अपनी,
बन जाऊँ मैं माली उसका,
बगिया की नन्ही कलियों में,
और वहाँ की गलियों में,
'सुगंध' प्रभु ऐसा भर दे,
कि महक उठे जग सारा।
वसुधा, अम्बर, और प्रकृति का,
हम पर है उपकार अनेक,
कल-कल बहती नदियाँ भी,
देती हमको यहीं संदेश,
बड़े भाग्य से हमनें,
यह मानव तन पाया हैं,
बस यही कामना है मेरी,
जल बन जायें यह जीवन मेरा
अर्पण बगिया में कर दें।
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