वीर सपूतों के वंशज हैं,
धीर सदा हम धरते हैं,
रण में भर दे हुंकार यदि,
पर्वत भी थर-थर करते हैं।
कोना-कोना इस धरती का,
कोना-कोना इस धरती का,
हमने सदियों से सजाया था,
ज्ञान, विज्ञान और कला का,
अलौकिक ज्योति जलाया था ,
मानव के उत्कर्ष स्वरूप से,
परिचय हमने करवाया था,
वेद, पुराण, योग व दर्शन
समस्त विश्व में फैलाया था,
सच है कि सहस्त्र वर्षों तक,
आक्रान्ताओं का साया था,
तलवार-तोप के बल पे,
भय का बादल छाया था,
अब समय ने करवट बदली है,
संयमित रहो, संगठित रहो,
औरों में न भ्रमित रहो,
हर नुक्कड़ पर दीपक धर दो,
अंधियारे में उजियारा भर दो।
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