अंधियारे में उजियारा भर दो...



वीर सपूतों के वंशज हैं, 
धीर सदा हम धरते हैं, 
रण में भर दे हुंकार यदि, 
पर्वत भी  थर-थर करते हैं। 
कोना-कोना इस धरती का, 
हमने सदियों से सजाया  था, 
ज्ञान, विज्ञान और कला का, 
अलौकिक ज्योति जलाया था , 
मानव के उत्कर्ष स्वरूप से, 
परिचय हमने करवाया था, 
वेद, पुराण, योग व दर्शन
समस्त विश्व में फैलाया था, 
सच है कि सहस्त्र वर्षों तक, 
आक्रान्ताओं का साया था,
तलवार-तोप के बल पे, 
भय का बादल छाया था, 
अब समय ने करवट बदली है, 
संयमित रहो, संगठित रहो, 
औरों में न भ्रमित रहो, 
हर नुक्कड़ पर दीपक धर दो, 
अंधियारे में उजियारा भर दो। 







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