हे मानव!


अद्भुत सी सृष्टि की रचना, 
उपवन, पर्वत, नदियाँ व झरना, 
इसमें मानव हैं एक सुंदर कल्पना, 
सभी गुणों को अंतस में धरे हुये, 
उर में संवेदन भावों को भरें हुये, 
इसके वर्गीकरण के मानक अनेक, 
दिव्यांग भी है उनमें से एक, 
हे मानव! सृष्टि के ध्वजवाहक, 
इसे सहज ही स्वीकार करें, 
इस करुणामयी धरणी पर, 
मानवता के वात्सल्य छाँव में, 
निज अनुपम जीवनगान कहें, 
जीवट जीवन अभिलाषा से, 
सृजनहार को धन्यवाद करें|

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