एक छोटा सा दिया जलायें...



प्यासा तिमिर, 
जीवन दीपों की चाह में, 
आ पहुंचा हैं द्वार तक , 
चंचल, चपल मानव आज, 
स्वयं जकड़ा हुआ निज सदन में, 
निराशा का घुप्प अंँधेरा, 
कुटुम्ब में भी एकाकी का ड़ेरा, 
प्रातः - सायं दोनों ठहरा, 
इस घड़ी में भी कुछ प्रहरी, 
सेवा-भाव से जल रहें हैं, 
तिमिर से नित लड़ रहें हैं|

हे भारतवासी! आओं सब मिलकर, 
इन सजीव दीपों के सम्मान में, 
जन-मानस के आशा संचार में, 
एक छोटा सा दिया जलायें|


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