क्षुधा




ईट के भठ्ठे में धधकती आग से, 
कहीं ज्यादा धधकती है, 
पेट में लगी भूख की आग, 
तपिश दोनों ही में है परन्तु, 
बुझ रही है , 
एक आग से दूसरी "आग", 
चाहत थी कि ये भी फेरें, 
अपने बच्चों के सिर पर, 
ममतामय निज हाथ, 
परन्तु स्नेह मात्र से कहाँ
बुझती है क्षुधा की आग?

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