देखा हैं...


देखा हैं...
एक 'स्मार्ट सिटी' में, 
नाले के किनारे , 
कूड़ो के ढेर पर, 
सिसकते बचपन को , 
अपना भविष्य ढूंढते देखा है|
वक्त की चौखट पर , 
गगनचुंबी इमारतों के साये में , 
कुछ भूखें-प्यासों को ,
तड़पते देखा है|
रंगीन शीशों के आड़ में में 
लोगों को,
पूरी दुनिया को, 
रंगीन समझते देखा है |
विकास की भेड़ चाल में, 
ध्वस्त शिक्षा की आड़ में, 
देश के नौजवानों को , 
यूँ ही भटकते देखा हैं|
नव निर्मित समाज में , 
सृजनकर्ताओं के प्रभाव में , 
मर्यादाओं को ,
फड़कते देखा हैं|

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