देखा हैं...
एक 'स्मार्ट सिटी' में,
नाले के किनारे ,
कूड़ो के ढेर पर,
सिसकते बचपन को ,
अपना भविष्य ढूंढते देखा है|
वक्त की चौखट पर ,
गगनचुंबी इमारतों के साये में ,
कुछ भूखें-प्यासों को ,
तड़पते देखा है|
रंगीन शीशों के आड़ में में
लोगों को,
पूरी दुनिया को,
रंगीन समझते देखा है |
विकास की भेड़ चाल में,
ध्वस्त शिक्षा की आड़ में,
देश के नौजवानों को ,
यूँ ही भटकते देखा हैं|
नव निर्मित समाज में ,
सृजनकर्ताओं के प्रभाव में ,
मर्यादाओं को ,
फड़कते देखा हैं|
आज के समय की हकीकत को बयान करती सुंदर कविता।
जवाब देंहटाएंबहुत-बहुत धन्यवाद🙏
हटाएंअद्वितीय।
जवाब देंहटाएं😇😇🙏
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